suniye
मन कछु सुमरत नाहीं ....भजन गीत
हे हरि,मन कछु सुमरत नाहीं।
हे हरि ,मन कछु सुमरत नाहीं।
का करिहें जग जपत बुढ़ाया
मोह माया का फेर बढ़ाया
जे असार संसार भँवर है
कहीं किनारा नाहीं।
हे हरि ,मन कछु सुमरत नाहीं।
पी॔त पाण पण पेम पराए
राग देव्श अपनों से
बहुरि भेद नहिं मिते रे मनुज के
साँच कहुँ सपने से
करनीं के फल किते मिलत है
पावो जुगत भिडाई
हे हरि, मन कछु सुमरअत नाहीं ।
कमलेश कुमार दीवान
नोटः यह भजन गीत ईश्वर की आराघना मे लिखा है, उन्हे सादर समर्पित है।
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