दरबारों मे खास हुए हैं
दरबारो मे
खास हुए हैं
आम लोग सारे ,
आम लोग सारे ।
गलियारो मे
पहरे...पहरे
जनता दरवाजो पर ठहरे ,
मुट्ठी भर जनत्तंत्र यहाँ पर
अधिनायक सारे ,।
दरबारो मे खास हुए हैं
आम लोग सारे ,।
आम लोग सारे ।
राज निरंकुश
काज निरंकुश
इनके सारे बाज निरंकुश
लोक नही
मनतंत्र यहाँ पर
गणनायक हारे ।
दरबारो मे खास हुए हैं
आम लोग सारे ।
आम लोग सारे।
ठहर गए
कानून नियम सब
खाली सब आदेश
मुफलिस की
आँखों मे आँसू
हरकारे दरवेश,
ऊँच..नीच के भेद वही हैं
काले वही ,सफेद वही है
स्वेच्छाचारी और अनिवारक
मणिबाहक सारे।
दरबारो मे खास हुए है्
आम लोग सारे ।
आम लोग सारे ।
कमलेश कुमार दीवान
मई १९९३
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बुधवार, 20 मई 2009
मंगलवार, 5 मई 2009
आज गाने,गुनगुनाने का,नहीं मौसम...
suniye
नहीं मौसम...
आज गाने,गुनगुनाने का,
नहीं मौसम
नाते रिश्ते आजमाने का ,
नहीं मौसम
घर बनाने और बसाने का,
समय है
उनको ढेलो से ढहानें का,
नहीं मौसम
आज गाने गुनगुनाने का
नही मौसम ।
मेरे तेरे,इसके उसके
फेर मे हम सब पड़े है
कुछ लकीरे खींचकर एक
चौखटे मे सब जड़े हैं
कायदा है समय से
सब कुछ भुनाने का
आज अपने दिल जलाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
एक मकसद,एकमँजिल,
एक ही राहें हमारी
क्रातियाँ ,जेहाद्द से दूने हुये दुःख
फिर कटी बाहें हमारी
जलजलों ,बीमारियों का कहर
बरपा है,
गुम हुई हैं बेटियाँ जब शहर
तड़फा है
यातनायें,मौत पर दो चार आँसू
और फिर मातम,मनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
दूर हो जाये गरीबी जब
जलजलों के कहर
सालेंगें नहीं
गोलियाँ ,बारूद बम और एटम का
क्या करेगें युध्द
पालेंगे नहीं
दरकते,और टूटते रिश्तों के पुल
बनानें का समय है
सरहदों को खून की
नदियाँ बनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
कमलेश कुमार दीवान
८ जून १९९४
नहीं मौसम...
आज गाने,गुनगुनाने का,
नहीं मौसम
नाते रिश्ते आजमाने का ,
नहीं मौसम
घर बनाने और बसाने का,
समय है
उनको ढेलो से ढहानें का,
नहीं मौसम
आज गाने गुनगुनाने का
नही मौसम ।
मेरे तेरे,इसके उसके
फेर मे हम सब पड़े है
कुछ लकीरे खींचकर एक
चौखटे मे सब जड़े हैं
कायदा है समय से
सब कुछ भुनाने का
आज अपने दिल जलाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
एक मकसद,एकमँजिल,
एक ही राहें हमारी
क्रातियाँ ,जेहाद्द से दूने हुये दुःख
फिर कटी बाहें हमारी
जलजलों ,बीमारियों का कहर
बरपा है,
गुम हुई हैं बेटियाँ जब शहर
तड़फा है
यातनायें,मौत पर दो चार आँसू
और फिर मातम,मनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
दूर हो जाये गरीबी जब
जलजलों के कहर
सालेंगें नहीं
गोलियाँ ,बारूद बम और एटम का
क्या करेगें युध्द
पालेंगे नहीं
दरकते,और टूटते रिश्तों के पुल
बनानें का समय है
सरहदों को खून की
नदियाँ बनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
कमलेश कुमार दीवान
८ जून १९९४
सोमवार, 4 मई 2009
आशाओं के सृजन का गीत ...." ओ सूरज "
suniye
आशाओं के सृजन का गीत
ओ सूरज
ओ सूरज तुम हटो ,मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है ।
चाहे अँधियारे घिर आएँ
सिर फोड़े तूफान
मेरी राह नहीं आयेगें
नदियों के उँचे ऊफान
ओ चँदा तुम किरन बिखेरों
तारों मे छिप जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है।
ओ सूरज तुम हटो, मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
कमलेश कुमार दीवान
आशाओं के सृजन का गीत
ओ सूरज
ओ सूरज तुम हटो ,मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है ।
चाहे अँधियारे घिर आएँ
सिर फोड़े तूफान
मेरी राह नहीं आयेगें
नदियों के उँचे ऊफान
ओ चँदा तुम किरन बिखेरों
तारों मे छिप जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है।
ओ सूरज तुम हटो, मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
कमलेश कुमार दीवान
शनिवार, 2 मई 2009
छूने को आकाश बहुत
छूने को आकाश बहुत
छूने को आकाश,
बहुत मन करता है
जाने कब ये हाथ और उँचे होंगें।
घुटनो चलते तारों को पाने मे रोया
चाँद पकड़ पाने की ,जिद करते..करते सोया
आज लगा यह सूरज ,
देखो सब कुछ हाँक रहा
अँधियारे को इस दुनिया से
कैसे ढाक रहा
सब कुछ खत्म हो पर दुनिया मे
बची रहें आशाएँ
जाने कब विश्वास और दूने होगें।
छूने को आकाश बहुत
मन करता है
जाने कब ये हाथ और उँचे होगें।
कमलेश कुमार दीवान
छूने को आकाश,
बहुत मन करता है
जाने कब ये हाथ और उँचे होंगें।
घुटनो चलते तारों को पाने मे रोया
चाँद पकड़ पाने की ,जिद करते..करते सोया
आज लगा यह सूरज ,
देखो सब कुछ हाँक रहा
अँधियारे को इस दुनिया से
कैसे ढाक रहा
सब कुछ खत्म हो पर दुनिया मे
बची रहें आशाएँ
जाने कब विश्वास और दूने होगें।
छूने को आकाश बहुत
मन करता है
जाने कब ये हाथ और उँचे होगें।
कमलेश कुमार दीवान
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