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मंगलवार, 5 मई 2009

आज गाने,गुनगुनाने का,नहीं मौसम...

suniye
नहीं मौसम...
आज गाने,गुनगुनाने का,
नहीं मौसम
नाते रिश्ते आजमाने का ,
नहीं मौसम
घर बनाने और बसाने का,
समय है
उनको ढेलो से ढहानें का,
नहीं मौसम
आज गाने गुनगुनाने का
नही मौसम ।
मेरे तेरे,इसके उसके
फेर मे हम सब पड़े है
कुछ लकीरे खींचकर एक
चौखटे मे सब जड़े हैं
कायदा है समय से
सब कुछ भुनाने का
आज अपने दिल जलाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
एक मकसद,एकमँजिल,
एक ही राहें हमारी
क्रातियाँ ,जेहाद्द से दूने हुये दुःख
फिर कटी बाहें हमारी
जलजलों ,बीमारियों का कहर
बरपा है,
गुम हुई हैं बेटियाँ जब शहर
तड़फा है
यातनायें,मौत पर दो चार आँसू
और फिर मातम,मनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
दूर हो जाये गरीबी जब
जलजलों के कहर
सालेंगें नहीं
गोलियाँ ,बारूद बम और एटम का
क्या करेगें युध्द
पालेंगे नहीं
दरकते,और टूटते रिश्तों के पुल
बनानें का समय है
सरहदों को खून की
नदियाँ बनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
कमलेश कुमार दीवान
८ जून १९९४

1 टिप्पणी:

  1. गुम हुई हैं बेटियाँ जब शहर
    तड़फा है
    यातनायें,मौत पर दो चार आँसू
    और फिर मातम,मनाने का
    नहीं मौसम ।

    bahut bhavpurn sunder rachna hai...

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