दरबारों मे खास हुए हैं
दरबारो मे
खास हुए हैं
आम लोग सारे ,
आम लोग सारे ।
गलियारो मे
पहरे...पहरे
जनता दरवाजो पर ठहरे ,
मुट्ठी भर जनत्तंत्र यहाँ पर
अधिनायक सारे ,।
दरबारो मे खास हुए हैं
आम लोग सारे ,।
आम लोग सारे ।
राज निरंकुश
काज निरंकुश
इनके सारे बाज निरंकुश
लोक नही
मनतंत्र यहाँ पर
गणनायक हारे ।
दरबारो मे खास हुए हैं
आम लोग सारे ।
आम लोग सारे।
ठहर गए
कानून नियम सब
खाली सब आदेश
मुफलिस की
आँखों मे आँसू
हरकारे दरवेश,
ऊँच..नीच के भेद वही हैं
काले वही ,सफेद वही है
स्वेच्छाचारी और अनिवारक
मणिबाहक सारे।
दरबारो मे खास हुए है्
आम लोग सारे ।
आम लोग सारे ।
कमलेश कुमार दीवान
मई १९९३
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