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गुरुवार, 3 जून 2010

कल क्या हो ?

पृथ्वी दिवस केअवसर पर गीत

       कल क्या हो ?

कोई मुझसे पूछे ,
कल क्या हो ?
मैं कहता ,यह संसार रहे ।

हम रहें ,न रहें
फिर भी तो
घूमेगी दुनियाँ इसी तरह।
चमकेगा आसमान सारा
नदियाँ उमड़ेगी उसी तरह।

ये सात समुंदर, बचे रहें
कोई व्दीप न डूबें
सागर में,
सब कुछ बिगड़े
पर थोड़ा सा
जल बचा रहे
इस गागर मे।

सब कुछ तो
खत्म नहीं होता
जो बचा आपसी प्यार रहे
कोई मुझसे पूछे
कल क्या हो
मे कहता हूँ ,संसार रहे ।

      कमलेश कुमार दीवान
नोटःःप्राकृतिक पर्यावरण के केन्द्र मे मानव है।जलवायु परिवर्तनशील तत्वो का
      समुच्य है।परिवर्तन होते रहें हैं और होंगें,परन्तु हमे आशाओं का सृजन
          करना चाहिये।संसार की आबादियो को यह गीत सादर समर्पित है।