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मंगलवार, 13 नवंबर 2012


पहले अपना दिया जलाओ

आओ जयोति पर्व मनाएँ
पहले अपना दिया जलाये ।
पहले अपना दिया जलाये ।।
दीपक से डरता अधियारा
दीपक से होता उजियारा
दीप दीप बाती बाती मे
साहचर्य क्या पता लगायें .
आओ अपना दिया जलाये ।

कमलेश कुमार दीवान

गुरुवार, 1 नवंबर 2012


बंदे मध्य प्रदेश

बंदे मध्य प्रदेश
बंदे मध्य प्रदेश ।।
चम्बल केन ,सोन नर्मदा
विन्ध्य सतपुड़ा कैमूर सर्वदा
मालवा निमाड़ प्रदेश
बंदे हृदृय प्रदेश ।
बंदे मध्य प्रदेश ।।

हरित आवरण
उज्वल नदियाँ
उपजाऊ मैदान
गाँव गाँव और
शहर शहर हैं
भले भले इन्सान
रीति निति के
कर्ता धर्ता
बसते है इस देश।
बंदे मध्य प्रदेश ।।

यह स्वरचित गीत प्रदेश को सादर  समर्पित है।।

        कमलेश कुमार दीवान

शनिवार, 11 अगस्त 2012

श्री कृष्ण के लिये एक प्रार्थना गीत सादर समर्पित है "श्याम मोरे श्याम मोरे श्याम मोरे (प्रार्थना भजन)


श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व


जो अनादि है,अजन्मा है ,अनंत आकाश का सृजनकर्ता एवम् नियंता है उसके स्वरूप मे
श्रीकृष्ण भगवान का जन्म कंस के कारगार मे दिन व्यतीत करते हुये देवकी॑-बसुदेव जी
की याद दिलाते है उनकी परिस्थितियाँ हमे जीवन संघर्षों की प्रेरणा देती है ।
          लोकतंत्र ,समाज और अर्थव्यवस्थाओं सहित शासन व्यवस्थाओं की जो चुनौतियाँ
आधुनिक सभ्यताओं के समक्ष आ रही है उससे हमे लगता है कि भारतीय समाज को पशुपालन
की तरफ लौटना होगा ,तभी हम समृध्द बने रह सकते हैं ।
श्री कृष्ण के लिये एक प्रार्थना गीत सादर समर्पित है  "श्याम मोरे श्याम मोरे

श्याम मोरे (प्रार्थना भजन)

श्याम मोरे ,श्याम मोरे ,श्याम मोरे
फिर तुझे आना पड़ेगा 
फिर तुझे आना पड़ेगा ।

आज फिर मीरा को
विष देकर ,सुधारा जा रहा है 
द्रोपदी के चीर से ,
पर्वत बनाया जा रहा है ।

सूर,उद्वव,नँद-जसुमति
देवकी बसुदेव सब है 
पर बहुत है कंस,
फिर कारां बनाया जा रहा है ।

रूख्मणि -राधा अकेली 
गोपियों की बँद बोली
ओ कन्हैया कालिया वध
के लिये आना पड़ेगा ।

श्याम मोरे,श्याम मोरे,श्याम मोरे 
फिर तुझे आना पड़ेगा
फिर तुझे आना पड़ेगा।

कमलेश कुमार दीवान
21/09/1998 

सोमवार, 30 जुलाई 2012

Kamlesh Kumar Diwan: सावन आये रे सावन आये रे

Kamlesh Kumar Diwan: सावन आये रे सावन आये रे

सावन आये रे सावन आये रे


रक्षा बँधन का पावन पर्व हमे निर्मलता प्रदान करे ,ताकि
हम लोकतंत्र, भारतीय संस्कृति और समाज के साथ साथ
पारिवारिक जीवन मूल्यो के प्रवाह को बनाये रखने मे समर्थ
हो सके ।
शुभकामनाओ सहित
स्वरचित गीत आप सभी को सादर समर्पित है..

सावन आये रे

सावन आये रे....
बादल बिजुरी और हवायें
घिर आये घनघोर घटाएँ
घन बरसाएँ रे...
सावन आये रे....।

सरवन के कच्चे धागों से
बहना करे श्रृंगार भाई का
जग जाने भारत की रीति
मूल्य जाने बहना कलाई का
सब मन भाये रे.....
सावन आये रे ...।

कमलेश कुमार दीवान
24/08/2010
होशंगाबाद म.प्र.

रविवार, 29 जुलाई 2012

AASHAON ka geet (HINDI )

     
               O sooraj tum hato -mujhe bhee
               aasman main aana hai
              pankh laga ud jana hai  .
          
              Chaye andhiyare ghir ayen
             sar fode  toofan
            maire raah nahi ayenge
            nadion kai uche uafan

            O chanda tum kiran bikhero
             taro main chip jana hai
            O sooraj tum hato mujhe bhi---- kamleshkumardiwan(srachit)

              जनसंख्या शिक्षा पर कविता

               छोटा सा आशियाँ


           आओ एक छोटा सा
            आशियाँ बनाये ।
          आओ एक छोटा सा
             आशियाँ बनाये ।
          भीड़ भरी सड़को पर
                चलना दुश्वार है
             रेलो की छत पर भी
                   आदमी सवार है
                पानी की धार नही
                रोटी रोजगार नही
                 छोटे से आँगन की
                      भूमिका बनाये

                आओ एक छोटा सा
                 आशियाँ बनाये ।

                कमलेश कुमार दीवान


                नोट॥.....यह कविता सन् १९९२ मे शासकीय शिक्षण महाविद्यालय खंड़वा  म.प्र.मै आयोजित           कविता प्रतियोगिता   के  अवसर पर  छात्राध्यापक के रूप मे सुनाई थी ।





रविवार, 25 मार्च 2012


कुछ तो अच्छा है

साधु भाई..... ,
कुछ तो अच्छा है
साधु भाई ,कुछ तो अच्छा है ।

दिन है और रात होती है
धरती पर जीवन ज्योति है
मौसम और रिश्ते बदले हैं
आपस मे बाते होती है
समय बावस्ता है
साधु भाई ....,
कुछ तो अच्छा है ।

कल के काम आज करना है
क्षण जीना क्षण क्षण मरना है
कठिन परीक्षा है
साधु भाई सब कुछ अच्छा है ।

कमलेश कुमार दीवान
18/12/2011

रविवार, 5 फ़रवरी 2012


आओ प्रगति करे हम

आओ प्रगति करे हम ...

धरा छोड़ आकाश ओर
जाने से क्या होगा
बेघरवार न जाने कितने
भुवन बशाने से क्या होगा .
आओ प्रगति करे हम....।

आओ प्रगति करे हम ....
खेतो को धानी चुनर दो
पर्वत को पेड़ों से ढक दो
पक्षी करें पेड़ पर कलरव
नदियों मे पानी बहने दो
खेले म्रगछौने घर घर मे
ऐसी गति करे हम
आओ प्रगति करे हम ...।

कमलेश कुमार दीवान
1/5/2010

रविवार, 29 जनवरी 2012


बसंत के बारे मे

ऐसे बसंत आये।
ऐसे बसंत आये।

मौसम हो खुशुबगार
और पँछी चहचहाये ।
नदिया बहे और खेतों मे
धानी चुनर लहराये।

ऐसे बसंत आये ।
ऐसे बसंत आये ।
 
 कमलेश कुमार दीवान
        27/11/09

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

ॠतु गीत  ..शीत

सर्द हवाएँ

अबकी बार,बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को ।
लौटी सर्द हवाओं को ।

काँप गई थी ,धूँप
चाँदनी कितनी शीतल थी
नदियाँ गाढी हुई
हवाएँ बेहद विचलित थी।

व्यर्थ हुये आलाव
आँच के धीमे होने से
फसलें ठिठुरी और फुगनियाँ
सहमी ..सहमी  सी ।

अबकी बार बहुत दिन सहते
रहे विवाई  पावों   की।

अबकी बार बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को।
लौटी सर्द हवाओं को।
      कमलेश कुमार दीवान
         ८ जनवरी ९५

सोमवार, 9 जनवरी 2012


इन्हे नहीं होना चाहिये था
                               
          कमलेश कुमार दीवान

हम सोचते रह जाते हैं
क्या क्या होने और कुछ भी नहीं रहने के बीच से
गुणा भाग कर रास्ते बनाते बनाते
सन्नाटो और वियावानों मे खेत रह जाते हैं।
मेरी समझ से इन्हे होना ही चाहिये था ....
बच्चो और माओं को ताई और धायों को
किस्सो कहानियों को राजा और रानियों को
परियों राजकुमार राक्षस के त्रिकोण बनाती बूढ़ी बाईयों को
यदि इन सबसे अलहदा भुआ,संसार के चित्र
बचपन मे ही नहीं दे जाती
तब गुड्डे गुड़ियो मे सिमट आई बड़ी दुनियाँ
सपनो मे भी जरा सी रह जाती ।
पगडंडियो ,कच्चे पक्के मार्गो,कारबाँ पथों को
ऊबड़ खाबड़ पहाड़ ,घाटियों मैदानो घौड़ा जुते रथो को
होना ही चाहिये था ,
पछुआ पुरवाई के साथ पालदार नौकाओं को
मेगलन,बेसपुक्की,कोलम्बस की शानदार यात्राओं को
होना ही चाहिये था ।
हमने जब जब भी रेगिस्तानो को पार कर आबादी बढ़ाई है
सागर को नापकर ,आसमान तक मे अपनी चक्करघिन्नी लगाई है
दुनिया और बड़ी होती गई है ,
नील,दजला.फरात,मीनाँग मीकाँग
सिन्धु गंगा,ह्वाँगहो यांगतीसीक्याँग आदि नदियाँ
मानव सभ्यताओं के पालने नहीं रह गई है
तकनीकी के जादू और बारूदी उगलियों पर नाचती इतराती दुनियाँ
आज भी बची रह सकती है बस
साम्राज्य बनाने ,फैलाने उन्हे बचाये रखने के सपने न हों
बहुत कुछ है ढिर भी
पिता की ऊगलियों को छोड़कर
रास्तो से दौड़ पड़ते बच्चो के लिये गुजाइश नहीं है
कि बह काधों से उतर समा सके
जानी पहचानी गोद मे,
उफ ये भीड़ भरी सड़कें ,पालदार नौकाएँ
ये कारबाँ मार्ग,नक्शे और दिशायें
बाहर का रास्ता दिखाती पगडंडियाँ ,
आदमी को
घनी बसी आबादियो के जंगल मे ले जाती है ,
इन्हे नहीं होना चाहिये था ।

                             कमलेश कुमार दीवान
                               जनवरी 1997

रविवार, 1 जनवरी 2012


नव वर्ष  गीत

आओ नव वर्ष
हम करे बँदन।
खुश हो सब
सुखी रहें
हो अभिनंदन ।।
आओ नव वर्ष....

काल की कृपा होगी
सारे सुख पायेगें
पीकर हम हालाहल
अमृत बरसायेगें ।
धरती गुड़..धानी दे
पर्वतों पर पेड़ रहें
रेलो मे सड़को पर
हम सबकी खेर रहें।
माँग मे सिंदूर रहे
भाल पर तिलक चंदन
आओ नव वर्ष
हम करे बँदन ।

नूतन वर्ष मंगलमय हो ।शुभकामनाओ सहित..

कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.