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रविवार, 27 दिसंबर 2015

मेरे बच्चो ......एक कविता

मेरे बच्चो ......एक कविता

मेरे बच्चो
कुछ न दे सका तुम्हे ऐसा
जिस पर गौरवान्वित हो सकुँ
ये उदासी, नीरसता , और एकाँकीपन
मेरे ही कारण है
तुम्हारी भावनायें और
संसार की भौतिक चीजों के प्रति आकर्षण
मेरे ही कारण है
मैने अब मान लिया है कि
सारे दोष मुझमे ही है
किन्तु तुम सब भी तो थे
मेरे साथ बड़े होते हुये
देखों अपना छोटा आँगन
सीमित जगह
जहाँ खेले कुदे सुरक्षित रहे
काँधो पर सेर करते करते
हवाई जहाज से आकाश छूँ रहे हो
पर यह सही है
मैरे बच्चो
कुछ न दे सका हूँ तुम्हे ऐसा
जिस पर तुम्हे गर्व हो
अब तुम खूद हासिल करो
अच्छे दोस्त
जो नाटक के पात्र न हो
पता लगाओं  ,बनाओं
उम्दा घर जो रेतं के घरोदों की मानिंद भुर भूरे न हो
मै मेरा घर छौटा आँगन और
मेरी भागम भाग भरी नौकरी की दुनियाँ
कुछ न कूछ तो देती रही है तुम्हे
पर वह कुछ नही जो
सब चाहते है
मेरे बच्चो अब तुम सीख लो ।

कमलेश कुमार दीवान
27/12/2015