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शनिवार, 21 मार्च 2015

बच्चे ......थक चुके है बच्चे


हमारे देश मे प्राथमिक से हायर सेकेन्ड्री तक सामान्य शिक्षा से लेकर विशेष विषयो के पाठ्यक्रम तक बच्चो की तरफ खिसकाने की कोशिश निरन्तर होती रहती है नैतिक शिक्षा , किशोर शिक्षा , पर्यावरण शिक्षा ,आपदा प्रबँधन तब कभी अध्यामिक शिक्षा, कृषि एवम् कानून की पढ़ाई भी तो लोकताँत्रिक एवम् कृषिप्रधान देश के लिये जरूरी है ।
शिक्षा के बारे मे  बच्चो पर सर्वाधिक बोझ परिवार की अपेक्षाओं का भी है ,जिसे कविता के माध्यम से रेखाँकित करने का प्रयास किया है कृपया देखें.
बच्चे
थक चुके है बच्चे
पढ़ते पढ़ते अनार आम
A B C D
अलिफ वे
पक चुके है शिक्षक
पढ़ाते पढ़ाते
अनार आम A B C D अलिफ वे ।
नही थके है निर्देश दाता
बच्चो को ये पढ़ाये
बच्चो को येसे पढ़ाये
हाथ धुलवाये
बच्चे भूखें है
उन्हे खाना खिलाये ,पानी पिलाये
बच्चे थक रहे हैं
आगामी दिनो मे
शौच कराने
पैर दवाने आदि आदि के
 निर्दैश भी  आयेगे
खाना खिलाने ,पानी भरने, पिलाने
बर्तन माँजकर उन्हे सहेजकर रखने
सब कुछ दूसरे दिन के लिये तैयार करने
रपट तैयार कर भेजने
कितना बढ़ गया है काम का बोझ
बच्चो पर किताबो के बोझ कि चर्चा
शिक्षको की लदान पर कोई बहस मुबाहिसे न हो
तब स्कुल कैसे चलेगें ।
कमलेश कुमार दीवान
07मार्च 2014